आज हम हिन्दुस्तान के दो महान् व्यक्तित्व पर चर्चा करने जा रहे है जिसमे भारत की कोकिला ( द नाइटएंगल ऑफ इण्डिया ) कही जाने वाली कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल, स्वंतन्त्रता सेनानी, महान कवयित्री सरोजिनी नायडू जिनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ, इसी महान कवयित्री के जन्मदिन को महिला दिवस के रूप मे मनाया जाता है ।
आज हम उस दौर की बात कर रहे है जब डॉ. अम्बेडकर 25 अप्रैल, 1948 को उत्तर प्रदेश शिड्यूल कास्ट्स फैडरेशन के अधिवेशन में भाग लेने के लिये रेलवे सैलून के द्वारा लखनऊ गए थे । ( बाबा साहेब भारत भर में अक्सर अपनी यात्रा रेलवे सैलून के द्वारा ही करते थे ताकि वे अपनी यात्रा का अधिकतम समय किताबें पढ़ने के लिये उपयोग कर सके ) उस समय उत्तर प्रदेश की गर्वनर कोकिला सरोजिनी नायडू थीं । वह बाबा साहेब को लेने स्टेशन पर आयीं और बाबा साहेब से कहा- डाक्टर साहब में आपको राजभवन ले जाने आयीं हूँ । आप मेरे निमंत्रण को स्वीकार करें ।
बाबा साहेब – बहन, मैं यात्रा के समय रेलवे सैलून में ही रहकर पढ़ता लिखता हूँ । क्योंकि मेरी प्रिय साथी मेरी पुस्तकें मेरे साथ रहतीं हैं इन्हें छोड़कर मैं कहीं नहीं जा सकता । मैं अपने इन मित्रों के बगैर एक मिनट भी आराम से नहीं बैठ सकता । अपने इतने मित्रों को लेकर आपके अतिथिगृह में कैसे आ सकता हूँ ?
माननीय नायडू – हां सो तो है, मैं जिधर दृष्टि दौड़ाती हूं, उधर आपके प्रिय मित्रों की ही भरमार है । आपका अध्ययन बहुत ही गहरा है । भारत मां को आप जैसे ज्ञानी सुपुत्र पर बड़ा गर्व है ।
बाबा साहेब – (उनकी बात को काटते हुए) मुझे विश्वास है कि अखिल भारतीय कांग्रेस की मां को भी गर्व होना चाहिए ।
माननीय नायडू – (बड़ी जोर से से हंसते हुए) क्यों नहीं । भारत मां के ये सुपुत्र इतने अध्ययनशील हैं और भारत को नियंत्रित और शासित करने के लिए संविधान बना रहे हैं, ऐसे सुपुत्र पर किसको गर्व नहीं होगा । आपके प्रकंड पांडित्य से सारा देश ही नहीं बल्कि सारा संसार प्रभावित है । माननीय सरोजिनी नायडू अपने स्थान से उठीं और पुस्तकों को उठा-उठाकर देखने लगीं । उनके हाथ से एक दो किताब नीचे गिर गई । तुरंत बाबा साहेब उठे और उन्हें यथास्थान संभाल कर रख दिया ।
बाबा साहेब माननीय नायडू से कहने लगे – मैं अपनी इन किताबी मित्रों की बड़ी देखभाल करता हूँ । अगर मैं ऐसा न करूं तो इनमें छुपे हुए ज्ञान के अमृत का आस्वादन मैं नहीं कर सकता ।
माननीय नायडू – क्या आपने सभी पुस्तकों सभी पुस्तकों को पढ़ा है ?
बाबा साहेब – (एक स्थान से किताब उठाते हुए) इन पुस्तकों को मैं पिछले सप्ताह कनाट प्लेस नई दिल्ली के पुस्तक विक्रेताओें से लेकर आया हूँ । कभी-कभी प्रकाशगण कोई नई किताब आने पर मेरे पास भेज देते हैं या सूचना मिलने पर मैं स्वयं खरीद लाता हूँ । मैंने स्वयं इन सांकेतिक लिपि का आविष्कार किया है ।
माननीय नायडू ने जाने की आज्ञा मांगते हुए दोपहर का भोजन अपने साथ करने का अनुरोध किया जिसे बाबा साहेब ने स्वीकार कर लिया । जाते समय महामहिम ने प्यार भरे शब्दों में कहा कि उन्हें भारत मां के होनहार पुत्र अपने भाई से मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई और कहा- अब मुझे पता लग गया है भारत के महान विद्वान ने रेलवे सैलून को अपना सामायिक घर क्यों बनाया हुआ है । आपके स्वाध्याय में किसी प्रकार की बाधा नहीं आनी चाहिए ।
प. मदन मोहन मालवीय ने बाबा साहेब के अपार ज्ञान को समझकर एक बार लाहौर में 1935 में कहा था कि वे ज्ञान के भंडार हैं । असीमित ज्ञान के धनी हैं । उनके विश्वास और हिन्दू पौराणिक मान्यता के अनुसार वे देवी सरस्वती के पुत्र हैं । उनका ज्ञान आगध है । उनके ज्ञान की कोई सीमा नही है । उन्होंने इसी अपरिमित ज्ञान के आधार पर समाज और धर्म को सुधारना चाहा है, परन्तु धर्म के ठेकेदारों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है अगर हिन्दू धर्म को जीवित रखना है तो डॉ. अम्बेडकर के विचारों को मानकर चलना होगा । उनके अगाध ज्ञान की जितनी प्रशंसा की जाए वह सब थोड़ी ही होगी । बाबा साहेब के केन्द्रिय सरकार ने एक्जीक्यूटिव सरकार बनने के उपलक्ष्य में 1944 में मालवीय जी ने हिंदू विश्वविधालय ( इस विश्वविधालय के संस्थापक स्वंय मालवीय जी थे ) में बाबा साहेब का स्वागत समारोह आयोजित किया । इस अवसर पर मालवीय जी ने कहा कि- ’’जिस ज्ञान पर ब्राह्यणों ने एक छत्र अधिकार कर रखा था उसे डाक्टर साहेब ने अपनी प्रकांड विद्वता से छिन्न-भिन्न कर दिया है । इन्होंने किसी भी ब्राह्यण विद्वान से ज्यादा ज्ञान अर्जित किया है । वे अपार, अगाध और असीम ज्ञान के भंडार है ।‘‘
इसी गहन अध्ययनशीलता के कारण उनके तर्क अकाट्य होते थे, मान्य और प्रमाणिक होते थे । उनके इसी अथाह ज्ञान के कारण उनके घोर विरोधी महात्मा गांधी जैसे लोग भी उनकी विद्वता पवित्रता और राष्ट्रधर्मिता को मानते थे ।
लेखक
कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
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