आज एक बार फिर सिद्व हो गया है कि जब-जब किसी दलित को मौका मिला, इतिहास फिर दोहराया गया, पहली बार जब किसी दलित को मौका मिला तो देश के सबसे पवित्र ग्रन्थ संविधान लिख डाला, तब भी हजारों लोगों ने उन पर उगंली उठाई और आंखे तानी, लेकिन उन्होनें वो काम इतने बेहतरीन तरीके से कर दिखाया की सबकी आंखे फटी की फटी रह गई । जो आज भी 122 करोड़ लोगों कि उम्मीदों पर खरा उतर रहा है जो आज इस देश और दुनिया के लिए एक मिशाल है ।
पुनः 1995 में जब एक बार फिर दलित की बेटी को कुछ समय के लिए मौका मिला तो उन्होनें दलितों को एक पहचान देने की कोशिश की, लेकिन मुनवादियों ने यह होने नहीं दिया लेकिन जाते-जाते वो कर दिखाया जिसे हम लखनऊ के अम्बेडकर पार्क के नाम से जाते हैं । जिस पर भी बहुत हल्ला हुआ, जब भी कोई दलित तरक्की करेगा तो आंखो में भी खटकेगा और हल्ला तो होगा ही, यह पहले से ही तय है, जिसे दलितों को समझना होगा ।
इस बार 2007 सारे अनुमानों को नकारते हुए बहुजन जनता ने साथ दिया और एक और इतिहास बन गया जिसे अब आने वाले हजारो सालों तक दलित स्वर्ण दौर के रूप में जाना जाएगा । किसी ने कहा है चाहे सुनामी आये, या भूकम्प या तूफान, कोई भी ताकत, इसे मिटा नहीं सकती, क्योंकि इसे मेहनत तथा हिम्मत के साथ दलित की बेटी ने बनाया है जिसे आने वाले हजारों सालो तक कोई आपदा मिटा नहीं सकती । जिसे हम राष्ट्रीय दलित स्मारक के नाम से जानते है ।
नोएडा में बने 700 करोड़ के राष्ट्रीय दलित स्मारक, 3.32 लाख वर्ग मीटर में फेले इस पार्क को तीन भागो में बनाया है, पार्क में 75 प्रतिशत क्षेत्र में हरियाली, 25 प्रतिशत क्षेत्र में निर्माण कार्य है, प्रथम मुख्य भाग में 39 मीटर उंचा स्तूप है जिसमें 18 फीट उंची डॉक्टर अम्बेडकर, मान्यवर काशीराम, बहन मायावती की कास्य प्रतिभा लगी है और उनका जीवन परिचय उल्लेखित किया गया है, स्तूप के दोनों और 68 फीट उच्चे फब्बारे बने है और दोनों और 16-16 हाथी बने है । दूसरे भाग में 100 फीट उच्चा मुख्य समता मूलक स्तम्भ बना है जिसके चारों और 11 महान दलित ( महात्मा ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज ,श्री नारायण गुरू, संत कबीर, संत रविदास, डॉं अम्बेडकर ,मान्यवर काशीराम, संत नामदेव, बिरसा मुंडा आदी ) महात्माओं की 18 फीट उंची कास्य प्रतिमाये लगाई गई है । मुख्य स्तूप के दोनों और 20 हाथी बने है, उद्यान में 7500 पेड़ लगे है । पार्क में रात्रि में बिजली, पार्क का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करती है जो आनन्दीत कर देता है ।
एक खास और अनकही बात यह पार्क हमेशा कहता रहेगा, कि जब भी कोई उच्च वर्ग का व्यक्ति इस पार्क में जायेगा, तो वह कभी भी किसी दलित को कम आकने की भूल या हिम्मत नहीं करेगा । जब-जब ऐसा कार्य होगा स्वर्णो की आंखो में खटकेगा क्योंकि कभी भी उन्होनें इतने उच्चे दलित स्मारक नहीं देखे है , उन्हें आदत नहीं है, इसलिए उन्हें चिड़ हो रही है । इसी चिड के कारण जब इन बेईमानों को देखो, जब पहली बार दलितों के लिए कोई मंदिर बना तो उनको पैसो की बर्बादी नजर आ रही है, लेकिन जब गांधी, नेहरू के स्मारक बनते है तो इनकी सोच बदल जाती है, यदि उनसे पूछा जाय कि देश में बने गांधी, नेहरू के स्मारकों पर बर्बाद किये अरबो की राशि का कितना प्रतिशत है, तो यह राष्ट्रीय दलित स्मारक गिनती में भी नजर नहीं आता है । तब इनकी बोलती बंद हो जाती है ।
आज भी मनुवादियों की सोच नहीं बदली है वो आज भी आजादी के 64 साल बाद भी दलितों को गुलाम बनाये रखना चाहते है उसी का कारण है कि वो नहीं चाहते कि कोई दलित उपर उठे या उसकी पहचान बने । आज जिस प्रकार दलितों को केवल सरकारी नौकरी का टुकडा, डालकर गुलाम बनाने का प्रयास जारी है जिसके कारण उन्हें आजादी और गुलामी का अहसास ही नहीं है, क्योंकि नौकरी के चक्कर में, सरकार की सेवा में, उनकी पूरी उम्र निकल जाती है और केवल रोटी के जुगाड को, वे आजादी कहते है जबकि असली आजादी तो तब प्राप्त होती है जब हमारी राजकाज और सता में भागीदारी हो ।
जहां तक स्मारक पर लगे धन की बात है यह दलितों बहुजनों का पैसा है, जो इस देश की आबादी का 85 प्रतिशत है, जिसकी आज तक वसूली नहीं हो पायी है, आज पहली बार सूद (ब्याज) वसूलने का मौका मिला है तो उसी से, वे चिड रहे है, जो हमारा हक और अधिकार है, जो अब यह ज्यादा दिनों तक नहीं रोक सकते है, यह दिल्ली की सता को स्पष्ट संदेश है । हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि हमारी आबादी जितनी है उनते प्रतिशत देश की धन सम्पदा, ताकत पर हमारा अधिकार है यह कोई भीख नहीं है, क्योंकि हम देश मालिक है, वारिश है ,अन्यथा यह हमारे साथ धोखा है ।
लेखक
कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
शानदार लेख
Sir, I want work with bsp as a maker of strategies to spread main motive of BSP,.
I have a brilliant idea to come back in 2022 election in govt of Uttar Pradesh.
The idea is that we have to work on groud level with the help of GPWs( Gram Panchayat Workers). We knew very well that how many districts in the UP and also knew about the tehsils, blocks and gram panchayats.
The strategy is that the party has to appoint lots of GPWs who will responsible to provide information to gram panchayat’s youth in order to aware of them which party is in interest of them and which not.
Let’s suppose, in Lucknow’s Malihabad tehsil there are 8 number of blocks in each block we need to appoint a GPW for only 5 gram panchayats in suppervion of area quardinator.
And every week in every Village collect youth from sc st, obc and minority community. Explain them the shortcomings of present govt, dalit atrocities and every single issue to the every single people of every Village of State.
Mera manana hai agar aisa hua toh party bharpoor vote payegi Grameen ilaakon se.
Idea mera hai aur detail me agar strategy explain karne ka avsar dena ho toh 9140878348 pe contact karein.